श्री राम चरित मानस मे जहां एक ओर सच्ची मित्रता कैसी हो इस का वर्णन है वहीं दूसरी ओर कैसे मित्रो को त्याग देना चाहिये इस का भी वर्णन है |
गो-स्वामी तुलसी दास जी कृत श्री राम चरित मानस की अग्र लिखित चौपाई मे कुटिल मित्र का वर्णन है
आगें कह मृदु बचन बनाई | पाछें अनहित मन कुटिलाई | |
जाकर चित अहि गति सम भाई | अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई | |
अर्थात जो सामने तो बना-बना कर कोमल वचन कहता है और पीठ
पीछे बुराई करता है और मन में कुटिलता रखता है, जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को त्यागने में ही भलाई है |
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी | कपटी मित्र सूल सम चारी | |
मूर्ख सेवक, कंजूस
राजा, कुलटा स्त्री, और कपटी मित्र
ये चारों शूल के समान कष्ट देने वाले हैं | अतः इनको त्यागने
में ही भलाई है |
गुरु संग दगा मित्र संग चोरी | हो नर अंधा या हो कोढ़ी | |
गुरु के साथ धोखा और मित्र के साथ चोरी (छल कपट) करने वाला व्यक्ति अगले जन्म
मे या तो दृष्टी हीन होता है अथवा कुष्ठ रोग से ग्राषित होता है |
ये सभी दोहे आज के समय मे सत्य हो रहे हैं
जवाब देंहटाएंRight
जवाब देंहटाएंRight is always right
जवाब देंहटाएंबहुत ही ग्यान की बात है जीवन में पालन करने योग्य।सादर प्रणाम जय श्री राम।
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