बुधवार, 18 जून 2014

श्री राम चरित मानस एवं श्रीमद भगवत गीता मे जाति प्रथा का खंडन |

श्री राम चरित मानस में शबरी की कथा से हम सभी परिचित है मतंग ऋषि के वचन में विश्वास रखते हुवे शबरी निरंतर रघुनाथ जी की भक्ति करती रही और अंततः वह समय भी आया जब करुणा के सागर रघुनाथ जी शबरी के पास गए, जब शबरी ने प्रभु के उस मनोहर रूप को देखा तो उसका प्रेम और भी बढ़ गया गो स्वामी तुलसी दास जी ने इसका वर्णन बहुत ही सुंदर चौपाई में किया है :-
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी | अधम जाती मैं जड्मती भारी ||
शबरी हाथ जोड़कर प्रभु से बोली की मैं निम्न जाति की मूढ़ स्त्री हूँ किस प्रकार आपकी स्तुति करूँ |
आगे गो स्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है :-
कह रघुपति सुन भामिनी बाता | मानऊँ एक भगति कर नाता |

रघुनाथ जी ने शबरी से कहा मेरा तो केवल एक भक्ति का संबंध है जिस में जाति का कोई महत्व नहीं है अर्थात  “हरी को भजे सो हरी का होई” श्रीमद भागवत गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है चतुवर्णमयासृष्टम् गुणकर्म विभागश: अर्थात चारों वर्णों का वर्गिकरण मेरे द्वारा गुण के आधार पर किया गया है न की जाति के आधार पर फिर भी हम इन व्यर्थ की बातों में उलझे रहते है की मैं बड़ा हूँ वो छोटा है उसकी जाति उच्च है और वह निम्न जाति का है और इस का लाभ समाज के उन चंद ठेकेदारों को मिलता है जो हमारी इस निम्न सोच का लाभ उठा कर अपना हित साधते हैं | आवश्यकता है इन बातों से ऊपर उठ कर अपने देश को पुनः विश्व गुरु बनाने की और अग्रसर करने की |    

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