गुरुवार, 19 जून 2014

श्री भगवान के धाम मे कैसे जाएँ ?

श्रीमद भगवत गीता के अध्याय आठ में एक श्लोक है जिस में व्यक्ति भगवान के धाम में कैसे जा सकता है उसका वर्णन है :-

अन्तकाले च मामेव स्म्रन्मुक्तवा कलेवरम |
यः प्रयाति स मद्भाभावं याति नास्त्यत्र संशयः ||

"अर्थात अंतकाल में जो कोई मेरा स्मरण करते हुवे शरीर का त्याग करता है वह तुरंत मेरे स्वभाव ( अर्थात मेरे धाम ) को प्राप्त होता है, इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है |"

लेकिन अन्त काल में भगवान का स्मरण होगा कैसे ? इसके लिए अपने दैनिक कर्मों का निर्वहन करते हुवे भी हमें निरंतर भगवान का स्मरण करना होगा | अब प्रश्न उठता है की एक साथ दो कार्य कैसे संभव है ? 

आइए एक छोटा सा उदाहरण लेते है | यदि कोई विवाहित स्त्री या पुरुष दोनों में से कोई भी यदि किसी दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाए तो ऐसी आसक्ति बहुत ही प्रबल होती है | ऐसी आसक्ति से ग्रसित व्यक्ति सदैव अपने प्रेमी का चिंतन करता रहता है | स्त्री अपने घरेलू कार्य के दौरान अपने कार्य को पूरी सावधानी से करती है ताकि उसके पति को उसकी इस आसक्ति का पता न चल सके | 

यही प्रवृति हमें अपने दैनिक व्यवहार में भी अपनानी होगी तभी कल्याण संभव है | प्रेम से कहिए जय सियाराम ! 

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