जीवन में मित्रता का क्या महत्व है यदि इसका अवलोकन करना होतो श्री राम चरित मानस में
श्री राम और सुग्रीव की मित्रता के वर्णन का द्रष्टांत देखना चाहिए |
जे न मित्र दुःख होहीं दुखारी | तिन्हहि बिलोकत पातक भारी ||
निज दुःख गिरि सम रज करि जाना | मित्रक दुःख रज मेरु समाना ||
जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हे देखने से ही बड़ा पाप लगता है | अपने पर्वत
के समान दुःख को धूल के समान एवं मित्र के धूल समान दुःख पर्वत के समान समझना
चाहिए |
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा | गुन प्रगटे अवगुनहिं दुरावा ||
मित्र का धर्म है की वह मित्र को बुरे मार्ग से रोक
कर अच्छे मार्ग पर चलाये एवं उसके गुण प्रगट करें एवं अवगुण को छुपाये
|
देत लेत मन संक न धरई | बल अनुमान सदा हित करई |
बिपति काल कर सतगुन नेहा | श्रुति कह संत मित्र गुन एहा ||
देने-लेने में मन में शंका न रखे | अपने बल के अनुसार सदा हित करता रहे और विपत्ति के समय तो सदा सौ गुना
स्नेह करें | वेद भी श्रेष्ठ मित्र के लक्षण यही बताते
हैं |
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