इस कलिकाल में मुक्ति और प्रभु की भक्ति पाना बहुत
ही सरल है लेकिन उसके
लिए हमें अपने दैनिक कार्यों को करते हुवे भी निरंतर प्रभु
को स्मरण करते रहने
की कला सीखनी होगी; धार्मिक ग्रन्थों में कहा गया है की
मृत्यु के समय मे
हृदय में जो विचार होते हैं उसी के अनुसार उस व्यक्ति को
गति प्राप्त होती
है...इसी लिए पहले लोग अपनी संतान का नाम ऐसा रखते थे जो मृत्यु
की
कष्टकर स्थिति में भी स्मरण रहे....गो-स्वामी तुलसी दास जी ने कहा है
“जियत
मरत दूसह दुःख होई |”
अर्थात
जन्म और मृत्यु दोनों ही कष्टकारी है लेकिन मेरा मानना है की निरंतर प्रभु
का स्मरण
आपको इस भय से मुक्त रखेगा, इसलिए ये ना सोचे की अभी तो
बहुत समय है, बल्कि अभी से प्रयास करना आरंभ कर दें, लेकिन कैसे ?
“ सोवत जागत उठत बैठत जपो निरंतर नाम,
हमारे निर्बल के बल राम”
गो-स्वामी तुलसी दास जी ने लिखा
है
“जन्म जन्म मुनि जतन कराहीं | अंत राम कही आवत नाही |
जासु नाम बल संकर काशी | देत सबहि सम गति अबिनासी |"
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