बुधवार, 25 जून 2014

क्या बिना भगवान के हमारा अस्तित्व संभव है ?


मानव जीवन एवं इस सृष्टि को सक्रिय एवं सुचारु रूप से संचालन के लिए जिन वस्तुओं की हमें नितांत आवश्यकता है वो है भूमि अर्थात जमीन, गगन अर्थात आकाश, वायु अर्थात हवा या आक्सीजन, नीर अर्थात जल या पानी क्या इन वस्तुओं का उत्पादन किसी कारखाने अथवा फेक्ट्री मे होता है आपका भी उत्तर होगा नहीं; ये सभी वस्तुएँ हमे जिससे प्राप्त होती हैं उनका नाम है भगवान, कैसे ?

  से भूमि
ग से गगन
व से वायु
न से नीर


क्या बिना भगवान के हमारा अस्तित्व संभव है ? यदि उत्तर ना होतो प्रेम से कहिए जय सियाराम

मानसिक तनाव से छुटकारा पाने का सरल उपाय |


हम सभी की यह कामना होती है की हम तनाव मुक्त एवं खुशहाल जीवन व्यतीत करें किन्तु आज के भागदौड़ भरे जीवन और अनियमित जीवन शैली में यह तनाव रूपी राक्षस कब हमें और हमारे परिवार को अपनी गिरफ्त में ले लेता है इसका पता ही नहीं चलता है | यदि आप भी किसी ऐसी समस्या से परेशान है तो आगे बताए गए उपाय को करें लाभ मिलेगा |

प्रतिदिन घर के सभी सदस्यों को रात्रि में सोते समय अपना सिरहाना पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिये ।

आप जिस कमरे में सोते हैं वहाँ पर अपने तकिये के नीचे एक छोटे से चाकू को रखें इससे नींद अच्छी आयेगी एवं डरावने स्वप्न नहीं दिखायी देंगे ।

सोने से पहले कपूर का दिया जलाएं एवं एक लोटे में जल भरकर रात में सोते समय उसे अपने सिरहाने रख कर सोएं एवं प्रातः काल उसे किसी कांटेदार वृक्ष अथवा गमले में डालें ।

शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से प्रतिदिन हनुमान जी की पूजा और उनका स्मरण करें एवं नियमित रूप से बजरंग बाण का पाठ करें यह पाठ प्रत्येक मंगलवार को नियमित रूप से करें ।


शनिवार के दिन श्री शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाएं एवं अपनी पहनी एक जोड़ी चप्पल किसी गरीब व्यक्ति को दान करें, पीपल वृक्ष की जड़ में एक लोटा जल चढ़ाएं और शनि देव के बीज मन्त्रों की एक माला का जाप करें ।

रविवार, 22 जून 2014

क्या करें जब पिता और पुत्र के सम्बन्धों मे हो कड़वाहट ?



यदि आपके घर में आपके पति एवं पुत्र के मध्य वैचारिक समानता नहीं है ...और जिसको लेकर आप परेशान हैं तो आगे बताये गए उपाय को पूरे श्रद्धा और विश्वास से करें आपकी समस्या का समाधान होगा |

प्रात: स्नानादि के पश्चात नित्य श्री गणेश स्त्रोत का पाठ किया करे | 
बुधवार या गणेश चतुर्थी से यह पाठ शुरू करे, साथ ही पीपल के वृक्ष को शनिवार के दिन दुग्ध मिश्रित जल एवं काला तिल अर्पित करे | 
तथा उसी वृक्ष के निचे घी का दीपक एवं धुप जलाए | 
पिता पुत्र के बीच बिगड़े संबंध को मधुर बनाने के लिए मन ही मन प्रार्थना करे एवं पीपल के वृक्ष को आदर से स्पर्श करके प्रणाम करे |
पूर्ण विश्वाश के साथ यह प्रयोग प्रत्येक शनिवार लगातार करते रहे ....बहुत ही चमत्कारिक उपाय है अवश्य करे लाभ होगा |

शनिवार, 21 जून 2014

शिक्षा का जीवन मे महत्व |


शिक्षा का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है स्वामी विवेकानन्द के कथनानुसार शिक्षा मनुष्य के भीतर छुपे सुप्त गुणों को जाग्रत कर उसे समाज एवं देश के लिए उपयोगी बनाती है |

येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञान न शीलं न गुणो न धर्म: | 
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मॄगाश्चरन्ति ||


जिसके पास न विद्या हो, न तप हो, न दान हो, न शील, न गुण न धर्म हो, ऐसा व्यक्ति इस लोक में मनुष्य के रूप में पशु के समान होता है |

सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम एक मात्र विकल्प है |


उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्यणि न मनोरथै: |
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मॄगा: || 


केवल सोचने मात्र से आप अपने किसी कार्य को पूर्ण नहीं कर सकते हैं कार्य को पूर्ण करने के लिए कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है जैसे सोते हुवे सिंह के मुख में हिरण स्वयं नहीं जाता है बल्कि सिंह को उसका आखेट करना पड़ता है ।

गुरुवार, 19 जून 2014

श्री भगवान के धाम मे कैसे जाएँ ?

श्रीमद भगवत गीता के अध्याय आठ में एक श्लोक है जिस में व्यक्ति भगवान के धाम में कैसे जा सकता है उसका वर्णन है :-

अन्तकाले च मामेव स्म्रन्मुक्तवा कलेवरम |
यः प्रयाति स मद्भाभावं याति नास्त्यत्र संशयः ||

"अर्थात अंतकाल में जो कोई मेरा स्मरण करते हुवे शरीर का त्याग करता है वह तुरंत मेरे स्वभाव ( अर्थात मेरे धाम ) को प्राप्त होता है, इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है |"

लेकिन अन्त काल में भगवान का स्मरण होगा कैसे ? इसके लिए अपने दैनिक कर्मों का निर्वहन करते हुवे भी हमें निरंतर भगवान का स्मरण करना होगा | अब प्रश्न उठता है की एक साथ दो कार्य कैसे संभव है ? 

आइए एक छोटा सा उदाहरण लेते है | यदि कोई विवाहित स्त्री या पुरुष दोनों में से कोई भी यदि किसी दूसरे के प्रति आकर्षित हो जाए तो ऐसी आसक्ति बहुत ही प्रबल होती है | ऐसी आसक्ति से ग्रसित व्यक्ति सदैव अपने प्रेमी का चिंतन करता रहता है | स्त्री अपने घरेलू कार्य के दौरान अपने कार्य को पूरी सावधानी से करती है ताकि उसके पति को उसकी इस आसक्ति का पता न चल सके | 

यही प्रवृति हमें अपने दैनिक व्यवहार में भी अपनानी होगी तभी कल्याण संभव है | प्रेम से कहिए जय सियाराम ! 

प्रभु का निरंतर स्मरण मृत्यु के भय से मुक्ति |

इस कलिकाल में मुक्ति और प्रभु की भक्ति पाना बहुत ही सरल है लेकिन उसके


लिए हमें अपने दैनिक कार्यों को करते हुवे भी निरंतर प्रभु को स्मरण करते रहने

की कला सीखनी होगी; धार्मिक ग्रन्थों में कहा गया है की मृत्यु के समय मे 

हृदय में जो विचार होते हैं उसी के अनुसार उस व्यक्ति को गति प्राप्त होती 

है...इसी लिए पहले लोग अपनी संतान का नाम ऐसा रखते थे जो मृत्यु की 

कष्टकर स्थिति में भी स्मरण रहे....गो-स्वामी तुलसी दास जी ने कहा है 

“जियत मरत दूसह दुःख होई |” 

अर्थात जन्म और मृत्यु दोनों ही कष्टकारी है लेकिन मेरा मानना है की निरंतर प्रभु

का स्मरण आपको इस भय से मुक्त रखेगा, इसलिए ये ना सोचे की अभी तो 

बहुत समय है, बल्कि अभी से प्रयास करना आरंभ कर दें, लेकिन कैसे ?

“ सोवत जागत उठत बैठत जपो निरंतर नाम, हमारे निर्बल के बल राम” 

गो-स्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है 

“जन्म जन्म मुनि जतन कराहीं | अंत राम कही आवत नाही |


जासु नाम बल संकर काशी | देत सबहि सम गति अबिनासी |" 

   


  

श्री राम चरित मानस मे कपटी मित्र के लक्षण |

श्री राम चरित मानस मे जहां एक ओर सच्ची मित्रता कैसी हो इस का वर्णन है वहीं दूसरी ओर कैसे मित्रो को त्याग देना चाहिये इस का भी वर्णन है |

गो-स्वामी तुलसी दास जी कृत श्री राम चरित मानस की अग्र लिखित चौपाई मे कुटिल मित्र का वर्णन है 

आगें कह मृदु बचन बनाई | पाछें अनहित मन कुटिलाई | |
जाकर चित अहि गति सम भाई | अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई | | 

अर्थात जो सामने तो बना-बना कर कोमल वचन कहता है और पीठ पीछे बुराई करता है और मन में कुटिलता रखता है, जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को त्यागने में ही भलाई है |

सेवक सठ नृप कृपन कुनारी | कपटी मित्र सूल सम चारी | |

मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री, और कपटी मित्र ये चारों शूल के समान कष्ट देने वाले हैं | अतः इनको त्यागने में ही भलाई है |  


गुरु संग दगा मित्र संग चोरी | हो नर अंधा या हो कोढ़ी | |  

गुरु के साथ धोखा और मित्र के साथ चोरी (छल कपट) करने वाला व्यक्ति अगले जन्म 

मे या तो दृष्टी हीन होता है अथवा कुष्ठ रोग से ग्राषित होता है |

बुधवार, 18 जून 2014

जीवन मे मित्रता का महत्व श्री राम चरित मानस से |


जीवन में मित्रता का क्या महत्व है यदि इसका अवलोकन करना होतो श्री राम चरित मानस में श्री राम और सुग्रीव की मित्रता के वर्णन का द्रष्टांत देखना चाहिए |

जे न मित्र दुःख होहीं दुखारी | तिन्हहि बिलोकत पातक भारी ||
निज दुःख गिरि सम रज करि जाना | मित्रक दुःख रज मेरु समाना ||

जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हे देखने से ही बड़ा पाप लगता है | अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान एवं मित्र के धूल समान दुःख पर्वत के समान समझना चाहिए |

कुपथ निवारि सुपंथ चलावा | गुन प्रगटे अवगुनहिं दुरावा ||

मित्र का धर्म है की वह मित्र को बुरे मार्ग से रोक कर अच्छे मार्ग पर चलाये एवं उसके गुण प्रगट करें एवं अवगुण को छुपाये |

देत लेत मन संक न धरई | बल अनुमान सदा हित करई |
बिपति काल कर सतगुन नेहा | श्रुति कह संत मित्र गुन एहा ||


देने-लेने में मन में शंका न रखे | अपने बल के अनुसार सदा हित करता रहे और विपत्ति के समय तो सदा सौ गुना स्नेह करें | वेद भी श्रेष्ठ मित्र के लक्षण यही बताते हैं |     

श्री राम चरित मानस एवं श्रीमद भगवत गीता मे जाति प्रथा का खंडन |

श्री राम चरित मानस में शबरी की कथा से हम सभी परिचित है मतंग ऋषि के वचन में विश्वास रखते हुवे शबरी निरंतर रघुनाथ जी की भक्ति करती रही और अंततः वह समय भी आया जब करुणा के सागर रघुनाथ जी शबरी के पास गए, जब शबरी ने प्रभु के उस मनोहर रूप को देखा तो उसका प्रेम और भी बढ़ गया गो स्वामी तुलसी दास जी ने इसका वर्णन बहुत ही सुंदर चौपाई में किया है :-
केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी | अधम जाती मैं जड्मती भारी ||
शबरी हाथ जोड़कर प्रभु से बोली की मैं निम्न जाति की मूढ़ स्त्री हूँ किस प्रकार आपकी स्तुति करूँ |
आगे गो स्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है :-
कह रघुपति सुन भामिनी बाता | मानऊँ एक भगति कर नाता |

रघुनाथ जी ने शबरी से कहा मेरा तो केवल एक भक्ति का संबंध है जिस में जाति का कोई महत्व नहीं है अर्थात  “हरी को भजे सो हरी का होई” श्रीमद भागवत गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है चतुवर्णमयासृष्टम् गुणकर्म विभागश: अर्थात चारों वर्णों का वर्गिकरण मेरे द्वारा गुण के आधार पर किया गया है न की जाति के आधार पर फिर भी हम इन व्यर्थ की बातों में उलझे रहते है की मैं बड़ा हूँ वो छोटा है उसकी जाति उच्च है और वह निम्न जाति का है और इस का लाभ समाज के उन चंद ठेकेदारों को मिलता है जो हमारी इस निम्न सोच का लाभ उठा कर अपना हित साधते हैं | आवश्यकता है इन बातों से ऊपर उठ कर अपने देश को पुनः विश्व गुरु बनाने की और अग्रसर करने की |    

इस कलिकाल मे भगवान के नाम जाप का महत्व |

गो स्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है 

“कलियुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिर नर ऊतरहिं पारा” 

अर्थात कलियुग में केवल नाप जाप से ही हम इस भव बंधन को काट सकते है | लेकिन अब प्रश्न उठता है की किस नाम का जाप करें, 

“ बंदउ नाम राम रघुबर को | हेतु क्रिसानु भानु हिमकर को || 

अर्थात श्री रघुनाथ जी के नाम “राम की वंदना करें, जो अग्नि, सूर्य, और चंद्रमा का हेतु है, अर्थात “र” “आ” “म” रूप से बीज है |
वह “राम” नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिव रूप है |

महा मंत्र जोई जपत महेसू | कासी मुकुति हेतु उपदेसू ||

राम नाम वही महामंत्र है जिसको स्वयं भगवान शिव भी जपते है और जिनका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है | काशी में मृत्यु के समय भगवान शिव इसी तारक मंत्र “राम” का उपदेश देते हैं |

जान आदि कबि नाम प्रतापू | भयउ शुद्ध कर उल्टा जापू ||

आदि कवि बाल्मीकी जी ने इसी राम नाम को उल्टा जप कर भी पवित्र हो गए मुक्त हो गए | माँ पार्वती भी भगवान शिव के साथ इसी राम” नाम का जाप करती हैं और इस नाम के प्रति उनकी प्रीति को देख कर भगवान शिव ने उनको अपनी अर्द्धांग्नी अर्थात अपने आधे अंग में धारण कर लिया |

नाम प्रभाउ जान सिव नीको | कालकूट फलु दीन्ह अमी को ||

“राम नाम के प्रभाव को भगवान शिव से अधिक कोई नहीं जनता है क्योंकि इसी नाम के प्रभाव से ही भगवान शिव ने जो विष पान किया था वह भी उनके लिए अमृत के समान हो गया था |  

इसी लिए सदैव “ सीय राममय सब जग जानी” इस सारे जगत को सीता राम मय जानकार सदा उनका स्मरण करते हुवे अपने कर्म को करते रहे |