मंगलवार, 22 जुलाई 2014

उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना

                            || श्री जानकीवल्लभो विजयते ||

गो-स्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित श्री राम चरित मानस की एक चौपाई में भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना ” अर्थात केवल हरि का निरंतर स्मरण ही एक मात्र सत्य है बाकी इस जगत में सभी कुछ केवल स्वप्न के समान है |
जैसे अर्ध निद्रा की अवस्था में जब आप कोई स्वप्न देखते हैं तो, स्वप्न की स्थिति के अनुसार आप सुख या दुःख की अनुभूति करते हैं, किन्तु जैसे ही आप जाग्रत अवस्था में आते है तो वह सभी सुख और दुःख की अनुभूति समाप्त हो जाती है |
ठीक इसी प्रकार जब आप भगवान के नाम जाप के महत्व को समझ जाते हैं तो आप इस स्वप्न के संसार की वास्तविकता को समझ जाते हैं और आपका हृदय एक ऐसे आनंद की अनुभूति की और अग्रसर होता है जिसका कभी अंत नहीं हो सकता |
ऐसा नहीं है की इस जगत के क्षणिक होने के आभास, हमें अपने जीवन में नहीं होता है लेकिन हम वास्तविकता की और अपना ध्यान केन्द्रित ही नहीं करते हैं, हिन्दी के पृसिद्ध कवि जय शंकर प्रसाद ने कहा है “ श्मशान संसार का सबसे बड़ा मुक शिक्षक है |
श्मशान ही वह स्थल है जो हमें जीवन के सत्य से परिचित करवाता है किन्तु हम पुनः इसको नकार कर इस स्वप्नवत संसार में रम जाते हैं | जीवन में सबसे बड़ा भय मृत्यु का होता है यदि आप इस भय से मुक्त होना चाहते हैं तो अपने आप को पहचानने की आवश्यकता है |
जिस दिन यह विश्वास आपके हृदय में अपनी पैठ बना लेगा की “ईश्वर अंश जीव अविनाशी” और इस अंश का वास्तविक लक्ष्य उस अंश से मिलना है तो आपके हृदय में बैठा मृत्यु का भय आपसे कोसो दूर होगा, जिस दिन आप प्रभु के उस मनोहारी रूप सौंदर्य में खो जाएंगे और निरंतर उसका स्मरण करते रहेंगे तो आप उस आनंद की ओर अग्रसर होगे जिसको सचिदानंद सत चित आनंद कहा गया है|
मेरे राघवेंद्र सरकार तो बिना कारण ही अपनी करुणा बरसाते ऐसे में यदि उनकी कृपा मिल जाए तो जीवन में कुछ भी अप्राप्त नहीं रह जाएगा |
गो-स्वामी तुलसी दास जी ने श्री रामचरित्र मानस में लिखा है की जो प्रभु राम का नाम दुर्भावना के साथ भी लेता है उसका भी प्रभु कल्याण करते हैं, अजामिल ने जीवन भर दुष्कर्म किए किन्तु यमदूतों को देख कर भय वश अपने पुत्र नारायण को पुकारने लगा तो केवल इतने पर ही प्रभु ने उसको अपना लोक प्रदान किया |
ऐसे करुणामय प्रभु का एक क्षण भी विस्मरण क्या उचित है ? सोचिए समय तीव्र गति के साथ भागा जा रहा है; ऐसा न हो की जब आपकी चेतना जाग्रत हो तब तक समय समाप्त हो चुका हो |
इसलिए “ उठत बैठत सोवत जागत जपो निरंतर नाम | हमारे निर्बल के बल राम” ||    

जय सियाराम       

शनिवार, 19 जुलाई 2014

|| सनातन धर्म के संस्कार ||


                       
    
                                || श्री जानकीवल्लभो विजयते ||

सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का आविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।

प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। 

महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात का दैवी जगत् से संबंध स्थापना के लिये किये जाते हैं।

नामकरण के बाद चूडाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। इसके बाद विवाह संस्कार होता है। यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सबसे बडा संस्कार है, जो जन्म-जन्मान्तर का होता है।

विभिन्न धर्मग्रंथों में संस्कारों के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है, लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है।

गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं। गर्भ संस्कार को दोष मार्जन अथवा शोधक संस्कार भी कहा जाता है। दोष मार्जन संस्कार का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ में आई विकृतियों के मार्जन के लिये संस्कार किये जाते हैं। बाद वाले छह संस्कारों को गुणाधान संस्कार कहा जाता है। दोष मार्जन के बाद मनुष्य के सुप्त गुणों की अभिवृद्धि के लिये ये संस्कार किये जाते हैं।

हमारे मनीषियों ने हमें सुसंस्कृत तथा सामाजिक बनाने के लिये अपने अथक प्रयासों और शोधों के बल पर ये संस्कार स्थापित किये हैं। इन्हीं संस्कारों के कारण भारतीय संस्कृति अद्वितीय है। हालांकि हाल के कुछ वर्षो में आपाधापी की जिंदगी और अतिव्यस्तता के कारण सनातन धर्मावलम्बी अब इन मूल्यों को भुलाने लगे हैं और इसके परिणाम भी चारित्रिक गिरावट, संवेदनहीनता, असामाजिकता और गुरुजनों की अवज्ञा या अनुशासनहीनता के रूप में हमारे सामने आने लगे हैं।

समय के अनुसार बदलाव जरूरी है लेकिन हमारे मनीषियों द्वारा स्थापित मूलभूत सिद्धांतों को नकारना कभी श्रेयस्कर नहीं होगा |




सोमवार, 7 जुलाई 2014

राम रक्षा स्त्रोत से आपतियों का सहज निवारण |


                                            || श्री जानकीवल्लभो विजयते || 

यदि आपके घर में तनाव का वातावरण हो एवं आर्थिक समस्याओं ने कर रखा हो परेशान तो नियमित रूप से अपने घर में राम रक्षा स्त्रोत का पाठ किया करें, भगवान श्री राम की शक्तियों में आपकी जितनी श्रद्धा होगी वैसा ही लाभ आप प्राप्त करेंगे | कुछ ही दिन में आपको आश्चर्य जनक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे क्योंकि :-

चरित रघुनाथस्य  शतकोटिप्रविस्तरम | एकैकमक्षर्म पुंसा महापातक नाशनम ||

श्री रघुनाथ जी का चरित्र सौ करोड़ गुना विस्तार वाला है और उसका एक एक अक्षर भी मनुष्य के महान पापों को नष्ट करने वाला है |

आपदामपहरतार्म दातारम सर्वसम्पदाम | लोकाभीरामम श्रीरामम भूयो भूयो नमामयहम ||

भगवान श्री राम सभी प्रकार की आपत्तियों को हरने वाले तथा सब प्रकार की संपत्ति को प्रदान करने वाले हैं इस लिए मैं भगवान राम को बारंबार प्रणाम करता हूँ |

राम रामेती रामेती रमे रामे मनोरमे | सहस्त्रनाम ततुल्यम राम नाम वरानने ||


श्री महादेव जी माँ पार्वती से कहते है:-  हे सुमुखी यानी सुंदर मुख वाली ! राम नाम विष्णु सहस्त्र नाम के तुल्य है | मैं सर्वदा “ राम राम राम “ इस प्रकार मनोरम राम नाम में ही रमण करता हूँ      

                                         प्रेम से कहिए "जय सियाराम"     

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

भगवान को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय |

भगवान को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय है भगवान का भजन और उनकी लीलाओं का निरंतर स्मरण, भगवान शंकर माँ पार्वती से कहते हैं :-

उमा राम सुभाउ जेहिं जाना | ताहि भजन तजि भाव न आना ||

भगवान शिव कहते हैं, हे पार्वती ! जगत पिता भगवान के स्वभाव को जो जान जाएगा, उसको भजन के सिवा और कुछ अच्छा नहीं लगेगा | यह देव दुर्लभ शरीर भजन करने के लिए ही मिला है; गो-स्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है:-

देह धरे कर यह फलु भाई | भाजिअ राम सब काम बिहाई ||

इस मानव शरीर को धारण करने का यही उद्देश्य है की हम निरंतर प्रभु श्री राम का स्मरण करते रहे, भगवान की प्राप्ति भजन करने से जितनी सुगमता से प्राप्त हो सकती है ऐसा कोई दूसरा सरल साधन उपलब्ध नहीं है | भगवान श्री कृष्ण ने भगवत गीता में कहा है :-

अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश: |
तस्याह्ं सुलभ: पार्थ नित्य युक्तस्य योगिन: || 
 
अर्थात हे अर्जुन ! जो पुरुष मेरे में अनन्य चित से स्थित हुआ सदा ही निरंतर मेरे को स्मरण करता है, ऐसे व्यक्ति यानी योगी के लिए मैं सुलभ हूँ | सुलभ शब्द भगवत गीता के सात सौ श्लोकों में केवल एक बार आया है | सांसारिक संबंध हमसे बहुत सी आपेछाये  रखते हैं किन्तु भगवान और संत हमसे थोड़ा सा लेते हैं और बदले में बहुत सा देते हैं | प्रेम से कहिए जय सिया राम